Thought Glue
Wednesday, 13 May 2020
प्लास्टिक की नींद
ये प्लास्टिक की नींद, ये मोम के ख़्वाब,
बेसब्र ख्वाहिशें, चूर चूर चैन,
बोझिल उम्मीदें, सिमटता साहस,
नीरव की चाह, विग्रह का आलिंगन,
ये प्लास्टिक की नींद, ये झूठ का जीवन।।
Wednesday, 29 January 2020
उमंग
चला कर ज़मी पर कभी कभी,
कि मज़ा ऊंचाइयों का आया करे,
ख़्वाब आसमानों के बुना कर कभी कभी,
कि मज़ा जीने का आया करे।।
ख्वाहिशें
गलियो से गालिया मिल जाया करती है
ज़रूरते ही ख्वाहिशें बन जाया करती है
हर उम्र की ख्वाहिशें अलग हुआ करती है
मेरी उम्र में तो ज़रूरते ही ख्वाहिशे हुआ करती है।।
हिम्मतें
ठोकरे खा खा कर हम गिरे इतना,
अल हिम्मतें हो परेशा बोल उठी,
बस हुज़ूर...., बस हुज़ूर......, बस हुज़ूर।
बचपन
गर थमाई हो अंगुली,
दिया हो वक़्त,
बचपन तो आज भी खिलखिलाता है,
मदमस्त......, मदमस्त।
ख़्वाब
टूट गया जो ख़्वाब, जोड़ सकता नहीं मै,
नए ख्वाबों की ताबीर रोक सकता नहीं मै।
उम्मीद की डोर पर चला जा रहा हूं,
इस डोर का छोर पर देख सकता नहीं मै।।
चाह
ज़िंदगी तुझे जीना चाहता हूं,
गाना और गुनगुनाना चाहता हूं।
ख़्वाब बचपन वाले फिर पालना चाहता हूं,
रोज़ कुछ नया बन जाना चाहता हूं।
बचा है इंसान मुझमें अब भी,
खुद को यकी दिलाना चाहता हूं।।
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